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Showing posts from September, 2021

OCTOBER MONTH -PRI PRIMARY SECTION

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 Pre- Primary Section - Vaishali Mahamunkar Grace, Gratitude and Humanity None of us could have ever imagined, the outbreak of pandemic and the circumstances in which the 32nd Olympic Games in Tokyo would be held. Tokyo Olympics was finally ready after they were postponed for a year. Tokyo Olympic games would have no doubt posed special and extraordinary challenges to not just participants, their coaches and trainers and their families but also to the many people connected with organizing of the event. As the games started the stories of players having contracted the new coronavirus emerged. One can only imagine what a challenge it would have been for these players, trainers and coaches to recover, train, comeback to their peak forms and to participate in the sports extravaganza amid the pandemic. Every Olympics brings with it stories of sportsmanship pushing themselves beyond threshold of tolerance, building of friendships between competitors on and off the field, controversies, p...
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Hindi Department - Sarita Chouhan   हम और हमारा गणेशोत्सव वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ अर्थात श्रीगणेश जो घुमावदार सूंड वाले हैं,जिनका विशालकाय शरीर है और जो करोड़ों सूर्यों के प्रकाश के समान दिखते हैं, वे हमारे हर कार्य को बिना किसी बाधा के संपन्न करें।हमारे देश में किसी भी शुभ कार्य को प्रारंभ करने से पहले गणेश जी का पूजन किया जाता है। गणेशोत्सव मुख्य रूप से ‘महाराष्ट्र’ में मनाया जाने वाला उत्सव है,परंतु वर्तमान में यह देश के अनेक भागों में धूमधाम से मनाया जाता है। गणेशोत्सव के पौराणिक महत्त्व से तो हम सभी अवगत हैं परंतु इसका ऐतिहासिक महत्त्व भी कम नहीं है।                                                लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणेशोत्सवको जो स्वरूप दिया उससे गणेश राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बन गए। तिलक के प्रयास से पहले गणेश पूजा परिवार तक ही सीमित थी।उन्होंने गणेश पूजा को सार्वजनिक महोत्सव का रूप देते समय उसे...

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                       Hindi Depatment  - Poonam Ranshoor      ‘ निज भाषा ’ भाव प्रकट करने का माध्यम ....... .                  निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल | बिन निज भाषा–ज्ञान के, मिटत न हिय को सब देसन से लै करहू’ भाषा माहि प्रचार  || अर्थात अपनी भाषा से ही उन्नति संभव है, क्योंकि यही सारी उन्नतियों का मूलाधार है | मातृभाषा के ज्ञान के बिना ह्रदय की पीड़ा का निवारण संभव नहीं है | भाषा तो अनेक हैं जिससे अनेकता में एकता के दर्शन होते हैं | हम इस बात से भली– भाँति परिचित हैं कि मातृभाषा ही एक मात्र ऐसी भाषा है जो व्यक्ति के भावों को, उनकी विचारधाराओं को बेहतर तरीके से प्रकट कराता है | अपनी भाषा में व्यक्ति जग जीत सकता है | यह बहुत ही खास बात है ‘निज भाषा’ की | निज भाषा में विचार– विमर्श करते समय किसी प्रकार की हिचकिचाहट नहीं होती और बिना रूकावट व्यक्ति गहरी से गहरी बात बड़ी ही सहज और सरल तरीके से व्यक्त कर सकता है | ü विविध प्रकार की कलाएँ, असी...

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 Hindi Department - Kanchan Shukla शिक्षा - शिक्षक और पीढ़ी शिक्षा-शिक्षक है सीढ़ी जो चढ़ेगी आगे की पीढ़ी... शिक्षा की पहचान शिक्षक द्वारा होती है और शिक्षक की अपनी पहचान उसकी शिक्षा द्वारा । यह दोनों  एक दूसरे  पर परस्पर निर्भर हैं। कबीर दास जी ने अपने दोहे में कहा भी है - "जाति न पूछो साधु की पूछ लीजिए ज्ञान | मोल करो तरवार का पड़ा रहने दो म्यान ||” अर्थात व्यक्ति के ज्ञान की पूजा होनी चाहिए न कि उसके बाहरी दिखावे की  | शिक्षा न सिर्फ़ ज्ञान प्रदान करती है बल्कि चरित्र निर्माण में भी सहायता करती है । सही दिशा में प्राप्त की  गई शिक्षा ही देश को उन्नत बनाने में सहायक सिद्ध होती है।  जीवन में औपचारिक शिक्षा मिले या अनौपचारिक शिक्षा ये दोनों एक शिक्षक के बिना अधूरे ही हैं। गुरु शब्द का अर्थ है – अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला   तथा शिक्षक का अर्थ है – भौतिक विषयों की अज्ञानता दूर कर ज्ञान प्रदान करने वाला | कहा भी जाता है - " गुरु बिन ज्ञान न ऊपजे गुरु बिन मिटे न भेद" बिना पथ प्रदर्शक के शिक्षा को सही दिशा नहीं मिल पाती है। कहते भी हैं “पढ़ेगा...
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मराठी भाषेचा लिपी इतिहास   देवनागरी लिपी ही बऱ्याच भारतीय भाषांची प्रमुख लेखन पद्धती आहे. संस्कृत ,  पाली ,  मराठी ,  कोकणी ,  हिंदी ,  सिंधी ,  काश्मिरी ,  नेपाळी ,  बोडो ,  अंगिका , भोजपुरी ,  मैथिली ,  रोमानी इत्यादी भाषा देवनागरीत लिहिल्या जातात. देवनागरी लिपी एकंदरीत देशातल्या व देशाबाहेरच्या एकूण १९४ भाषांसाठी वापरली जाते.         देवलोक आणि नागरलोक या संबंधी विविध प्रकारच्या लेखनासाठी उपयोजिली जाणारी लिपी ,  ती देवनागरी लिपी होय. मोडी लिखाण   - देवनागिरी लिपीची जलद लिपी म्हणून मोडी लिपी ओळखली जाते. लेखणी कमीत कमी वेळा उचलून भरभर लिहिता यावे म्हणून या लिपीची निर्मिती झाली. मोडी लिपीला पिशाच्यलिपी म्हणून ओळखली जाते. जवळ जवळ ७०० वर्षपुर्वी देवनागरी     लिपी प्रचलित होती. देवनागरीत काना ,  मात्रा ,  इकार ,  उकार देताना प्रत्येक वेळी हात उचलावा लागे तो वेळ वाचावा व अतिजलद लिहिता यावे म्हणून मोडी लिपीचा वापर सुरू झाला. मोडी लिपीत लिहिताना प्रथम डावीकड...