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Hindi Depatment - Poonam Ranshoor
‘निज भाषा’ भाव प्रकट करने का माध्यम.......
. निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल |बिन निज भाषा–ज्ञान के, मिटत न हिय को सब देसन से
लै करहू’ भाषा माहि प्रचार ||
अर्थात
अपनी भाषा से ही उन्नति संभव है, क्योंकि यही
सारी उन्नतियों का मूलाधार है | मातृभाषा के ज्ञान के बिना ह्रदय की पीड़ा का
निवारण संभव नहीं है |
भाषा तो अनेक हैं जिससे अनेकता में एकता के दर्शन होते हैं | हम इस बात से भली–
भाँति परिचित हैं कि मातृभाषा ही एक मात्र ऐसी भाषा है जो व्यक्ति के भावों को,
उनकी विचारधाराओं को बेहतर तरीके से प्रकट कराता है | अपनी भाषा में व्यक्ति जग
जीत सकता है | यह बहुत ही खास बात है ‘निज भाषा’ की | निज भाषा में विचार–
विमर्श करते समय किसी प्रकार की हिचकिचाहट नहीं होती और बिना रूकावट व्यक्ति
गहरी से गहरी बात बड़ी ही सहज और सरल तरीके से व्यक्त कर सकता है |
आज ‘नई शिक्षा प्रणाली’ के अंतर्गत इस बात को प्रधानता दी जा रही है कि प्राथमिक
स्तर पर विद्यार्थी अपनी भाषा में शिक्षा ग्रहण कर सकता है | शिक्षा में होने वाले इस
बदलाव से आने वाली पीढ़ी लाभान्वित होगी | लोग अपनी भाषा बोलने से नहीं
कतराएँगे | किसी के भी सामने निज भाषा में बात करने से लज्जित नहीं होंगे बल्कि
गर्व का अनुभव करेंगे | सांस्कृतिक बोध मातृभाषा से ही संभव है और जब भारतीय
भाषाएँ विकसित होती हैं तो संस्कृति भी विकसित हो जाती है |आज तक की शिक्षा में
भाषा को लेकर हो रहे भेद-भाव को ख़त्म करने का बीड़ा नई शिक्षा प्रणाली ने उठा लिया
है | अब शिक्षा को लेकर प्रत्येक विद्यार्थियों और अभिभावकों के मन में समानता का
भाव होगा | कोई भी भाषा को लेकर उपहास का पात्र नहीं बन पाएगा | विद्यार्थी अपनी
भाषा में ही वह सब कुछ कर सकेगा जो आज तक की शिक्षा नीति में उनके लिए सपना
था | पहले विशेष भाषा को थोपा जाता था | इस कारण कुछ प्रतिशत विद्यार्थियों में
समझने की क्षमता कम हो जाती थीं | आज स्वेच्छा से वे अपनी भाषा में वही ज्ञान
ग्रहण कर सकते हैं और नि:संदेह हर विद्यार्थी लाभान्वित होंगे |
ध्यान को बाँधकर रखने
वाली कुछ पंक्तियाँ अपनी भाषा के नाम :
जैसे चीटियाँ लौटती हैं बिलों में
कठफोड़वा लौटता है काठ के पास
वायुयान लौटते हैं एक के बाद एक
लाल आसमान में डैने पसारे हवाई अड्डे की ओर
ओ मेरी भाषा मैं लौटता हूँ तुम में
जब चुप रहते – रहते मेरी अकड़ जाती है जीभ
दुखने लगती है मेरी आत्मा
(केदारनाथ सिंह )
पूनम रणशूर
हिंदी विभाग
Nice
ReplyDeleteNice
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