Hindi Department - Poonam Ranshoor
हम पिछले दो साल से कई मुश्किलों का सामना करते आ रहे हैं | सभी को - कहीं ना कहीं मानसिक तथा आर्थिक आघात पहुँचा है | विद्यार्थीं के जीवन की ओर ध्यान दिया जाए तो उनके जीवन पर भी गहरा प्रभाव पड़ा है | घर बैठे ऑनलाइन की पढ़ाई करते – करते उनपर लगे अनुशासन की लगाम सभी अभिभावक और शिक्षकों के हाथ से छूट गई है | वे अपाहिज हो चुके हैं | अपाहिज का अर्थ है कि विद्यालयीन जीवन में विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास हेतु जो भी कार्य होते थे उससे वे वंचित हो चुके हैं |
आज दो साल के बाद जब विद्यार्थियों को शिक्षिका के रूप में देखूं तो मैं यही कहूँगी कि विद्यार्थी उस बंद मशीन की तरह हो गए हैं जिसकी शुरुवात करने से उस मशीन में खड – खड की आवाज़ आती है और उसे सुचारू रूप से चलाने के लिए उसमें तेल डाला जाता है | विद्यार्थी के जीवन में हुए मानसिक तथा शारीरिक क्षति की भी पुनः मरम्मत की जानी चाहिए | ऐसे मौके पर अभिभावकों को धैर्य रखने की आवश्यकता है |
दो साल के इस विद्यालयरहित जीवन के कारण विद्यार्थियों को जो शारीरिक तथा मानसिक क्षति पहुँची है, उससे उभरने में समय लगेगा | हमें धीरे – धीरे विद्यार्थियों के जीवन का नव निर्माण करना है | उन्हें पुन: उभारना हैं | उनकी जीवन शैली में अनुशासन और व्यावहारिक ज्ञान भरना है | उनके अन्दर के मैल को साफ़ कर उनमें नैतिक मूल्यों का विकास भी करना है |
हर छात्रों में नैतिक मूल्यों की खान भरें,
उनके जीवन में मुस्कान भरकर,
आने वाली पीढ़ी का पुन: नव निर्माण करें |
पूनम रणशूर

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